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जिन्दगी की खुशियों का सूत्र : राजयोग

रॉची - प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय चौधरीबगान, हरमू रोड के तत्वावधान में होटल प्लेटयू दीपाटोली रॉँची में जिन्दगी की खुशियों का सूत्र : राजयोग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उदघाटन संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम में अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा कि खुशी मानव का मूल गुण है, उसका श्रृगांर है, आत्मा की खूराक है। भगवान का दिया हुआ विरासत है जिसे हम दोनो मुद्दियों में कसकर बंद किये हुए संसार रंगमंच पर आते हैं। लेकिन धीरे-धीरे ये बंद मुह्वियाँ खुलती जाती है और खुशी विखरते बिखरते आखिर सी हो जाती है। फिर शुरू होता है खुशी को खोजने का निरर्थक दौर। व्यक्ति, वस्तु, वैभव, प्रकृति, इन्द्रियों के विषयों से लेकर समस्त भौतिक जगत को खंगालने पर भी वो मनुष्य से दूर भागती नजर आती है। जैसे कोई दिल्ली जाने की गाड़ी में बैठे और यात्रा पूरी होने पर अपने को मुम्बई में पाये कुछ ऐसी ही हालत इस भौतिक जगत में खुशी के लिए भटकने वालो की होती है। जड़ चीजो में खुशी नहीं है, खुशी आत्मा का एक दिव्य अनुभव है तो उसका जड़ चीजों क्या लेना देना। कहते हैं कि एक बार देवताओं की एक गुप्त मीटिंग में इस बात पर विचार विमर्श हुआ कि खुशी रूपी खजाने को छिपाने का सही स्थान कौन सा है। एक देवता का विचार था कि इसे समुद्र की गहराईयों में छुपाया जाय। जहां मनुष्य पहुँच नहीं सकता है। परंतु दुसरे देवता ने उसकी बात काट दी और कहा कि पनड्ब्बियो के द्वारा मानव वहां पहुंच सकता है। दूसरे देवता ने हिमालय कि ऊँची चोटी पर रखने का सुइझाव दिया लेकिन इसको भी काट दिया गया। तभी एक अन्य देवता को सुन्दर विचार सुझा जिसे सभी ने मान लिया। विचार यह था कि खुशी को मानव के अन्तर मन में आर्थात आत्मा में छिपा दिया जाय । वह कभी अपने भीतर झाकेगा ही नहीं, और आज के दौर में यह बात सत् प्रतिशत सिद्ध हो रहा है। भीतर की खुशी से आअनजान मानव कस्तूरी के मृग की भांति खुशी को चकार्चौंध में होटल, सिनेमा, क्लव, टीवी, पार्टी, शादी, वस्त्र, भोजन आदि बाहरी चीजों में खोज रहा है। इन अल्प काल की साधनों में उसे चकार्चौध करने वाली अल्पकाल की खुशी जरूर मिलती है लेकिन जैसे बिजली के कौंध के बाद जैसै अंधकार और भी घना हो जाता है उसी प्रकार अल्पकाल की खुशी समाप्त होने पर निराशा ही अनुभव होती है।ब्रह्माकुमारी इंदू बहन ने कि कहा खुशी नहीं, खुशी की स्मृति खो गई। खुशी आत्मा के अन्दर है और खुशी का शाश्वत स्रोत परमात्मा शिव हैं। जब हम स्वयं के भीतर जाकर आत्म साक्षात्कार करके जब हम ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं तो खुशी की खोई चाबी हमारे हाथ लग जाती है। खुशी का आधार खुशी की बातों का चितन है। यदि कोई चक्की में नमक पीसे तो बाहर नमक ही निकलेगा, चीनी पीसे तो चीनी ही बाहर निकलेगा। उसी प्रकार मन रूपी पटल पर हम जिस प्रकार के विचारों को पीस रहे हैं उसी प्रकार का अहसास सारे वातावरण में फैल जाता है। मन रूपी चक्की में पीसे दख, अशांति, कलह क्लेश, ईष्या, बदले की भावना. स्वार्थ, क्रोध, नफरत आदि गलत विचार हो तो खुशी का रस कैसे मिलेगा। यह खुशी का रस तो सुख, शांति, आनंद, प्रेम, दया, रहम, क्षमा, त्याग, सेवा जैसी विचारों को मन रूपी चक्की में पीसने से उत्पन्न होगा। खुशी एक ऐसा ईत्र है जो अनेक सदगुणों व नैतिक मुल्यों रूपी फलों से निकले रस के श्रेष्ठ भावों को मिला कर तैयार किया जाता है। इसके लिए जीवन की दुखदायी स्मृतियों से मुक्ति जरूरी है। निर्मला बहन ने कहा कि अपने जीवन में खुशी को स्थाई रखने के लिए राजयोग का निरंतर अभ्यास आवश्यक है। जिसे ब्रह्माकुमारी संस्थान में प्रतिदिन निः:शुल्क प्रदान किया जाती है। कार्यक्रम में प्लेटयू होटल के बिल्डर कुमूद कुमार झा, प्रभात रंजन पूर्व बैंक ऑफिसर, बिन्दू प्रसाद कुमार पूर्व बैंक ऑफिसर, एल० विश्वकर्मा पूर्व ऑफिसर, आई०ई०एल०, गोमिया एवं ब्रह्माकुमारी इंदू बहन उपस्थित थे । कार्यक्रम में सभी ने अपने अपने विचार रखे।