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उर्दू भाषा सरकारी उपेक्षा की शिकार :- सईद अख्तर

आम आदमी पार्टी के प्रदेश मिडिया प्रभारी सईद अख्तर ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहा कि उर्दू भाषा झारखंड सरकार के उपेक्षा की शिकार हो रही है। भारत वर्ष की आजादी के पूर्व से ही उर्दू एक लोकप्रिय और समृद्ध भाषा के रूप में प्रचलित है। कुछ वर्ष पहले तक उर्दू माध्यम के प्रारम्भिक और माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा सभी विषयों के लिए उर्दू माध्यम से सरकार द्वारा पुस्तकें बच्चों को उपलब्ध कराई जाती थीं और उसी अनुपात में विद्यालयवार शिक्षकों की नियुक्ति भी होती थी। परंतु कुछ वर्षों से उर्दू भाषा सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गई है। आज उर्दू विद्यालयों की केवल एक पुस्तक जो मातृभाषा की होती है, की छपाई सरकार द्वारा उर्दू भाषा में कराई जाती है और शेष सभी पुस्तकें हिंदी भाषा में कराई जा रही हैं। दूसरी ओर, उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति भी सरकार द्वारा नहीं की जा रही है, जिसका परिणाम है कि आज पूरे राज्य में पूर्व से नियुक्त उर्दू शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनके स्थान पर हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। वर्तमान में कार्यरत उर्दू शिक्षकों की संख्या नगणय है। इस प्रकार, सरकार के अधीन प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया के तहत में किसी भी उर्दू शिक्षक की नियुक्ति नहीं होगी। पूर्व से नियुक्त उर्दू शिक्षक जो शेष हैं, वे शीघ्र सेवानिवृत्त हो जाएंगे, जिसका परिणाम है कि झारखंड राज्य के सभी उर्दू विद्यालय उर्दू शिक्षक रहित होंगे और उर्दू विद्यालयों का मौलिक स्वरूप हिंदी विद्यालय बन जाएगा। यह एक सोची समझी साजिश का परिणाम है, जिसमें वर्षों पहले ही उर्दू भाषा को कुचला गया है। पूर्व से नियुक्त उर्दू शिक्षकों के स्वी

कृत पदों के अतिरिक्त सरकार ने योजना मद से 4401 उर्दू शिक्षकों के पद स्वीकृत करके झारखंड के विभिन्न जिलों में वितरित किए गए थे, परंतु आज तक उन पदों पर नियुक्ति नहीं की गई है और सभी पदों को हिंदी शिक्षकों के पदों में समर्पित कर दिया गया है। इस प्रकार, वर्तमान में सरकार के अधीन प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया के तहत किसी भी उर्दू शिक्षक की नियुक्ति नहीं होगी, जिसका परिणाम है कि झारखंड राज्य के सभी उर्दू विद्यालय उर्दू शिक्षक विहीन हो जाएंगे और उर्दू विद्यालयों का मौलिक स्वरूप हिंदी विद्यालय बन जाएगा। ये है द्वितीय राजभाषा उर्दू का भविष्य, जिस पर सभी उर्दू भाषी लोगों को साझा मंथन करने की आवश्यकता है।